किस्सा मिट्टी का
एक बार की बात है मै अपने दोस्तों के साथ नाटक करने के लिए यू पी के एक छोटे से गाँव जा रहा था। ये इलाका पहाडियों से घिरा था । इन पहाडियों के बीच में छोटे छोटे तालाब थे। जो हम लोगो को अपनी और खीच रहे थे। हम बहुत उत्साहित थे बहुत खुश भी थे। एक दूसरे को परेशान कर रहे थे, पहाड़ की ऊँची- नीची सडको पर दौड़ रहे थे, मजे की बात तो यह है की हम सभी सुबह होने के कारन अभी तक फ्रेस भी नही हुए थे। तभी हमरे एक दोस्त ने कहा कि एक सुनसान पहाड़ी के पास जो तालाब है वंहा पर हम सभी फ्रेस हो सकते है। हम संभी ने हामी भर दी इसी बीच एक दोस्त ने बोला कि यंहा गाँव के लोग तालाब के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए करते है। इस लिए हम सभी को गाँव से दूर किसी तालाब के किनारे चलना चाहिए हम सभी ने उनकी बात मान ली और पहाड़ी के दूसरी तरफ़ स्थित तालाब के किनारे पहुँच गए। सभी दोस्तों ने अपने-अपने हिसाब से फ्रेस होने कि जगह तलाश ली कुछ झाडियों के पीछे चले गए तो कुछ खुले में ही बैठ गए। मै और मेरा एक मित्र तालाब के दूसरी तरफ़ चले गए। अभी हम लोग फ्रेस हो ही रहे थे कि एक बुजुर्ग आदिवासी महिला पहाड़ी से नीचे उतर कर आई जिसके एक हाथ में कुल्हाडी थी और वो हम लोगों को देखकर जोर-जोर से गलियां देने लगी। हम लोग शर्म के मारे पानी के नजदीक नही जा पा रहे थे। काफी देर तक जब वो महिला वंहा से नही हटी तो हम सभी ने अपनी-अपनी पैंट पकड़ी और वंहा से भाग निकले। एक दोस्त तो इतना डर गया कि उसने पानी कि जगह मिट्टी का इस्तेमाल कर लिया।मैंने देखा कि हम सातों दोस्त पहाड़ी के ऊँचे-नीचे रास्तों पर पैंट पकड़े दौड़ रहे थे। मुझे आज भी जब ये पल यादआता है तो इस दौड़ते -भागते जिंदगी में सुकून के कुछ पल का एहसास हो जाता है..जो अच्छा लगता है....हरी... वीर...